हम विश्वनाथ मंदिर के पंक्षी



आजकल बहुत दुःख है। वो दिन कुछ और था जब हम भी चैन से सोया करते थे। शाम जैसे ही होती थी, हम वापस आ जाते थे अपने घर। पूरे कैंपस के साथी यहाँ आ जुटते थे। हमें बहुत अच्छा लगता था संगमरमर के उस भवन के चारो ओर पंख फैला कर उड़ना। पूरे दिन भर का थकान यहाँ आकर दूर हो जाता था। .......
पर अब सब कुछ बदल चुका है। अब हम बेरोजगार हैं, क्योंकि जो पेड़ हमें रोजगार देते थे, वो कट चुके हैं। खाना मिलना मुश्किल हो गया है। वो तो भला हो बड़े दिल वाले उन लोगों का, जो हमारे लिए छत पर दाना पानी रख देते हैं। शाम ढलने पर हम अब भी आते हैं वहीं, पर अब वो शांति नहीं। आँखे चौंधिया जाने वाली लाइट हम पे पड़ती रहती है। हम तो कंफ्यूज रहते हैं कि रात हुई भी है कि नहीं।
...तुम लोगों को तो मज़ा आता है। बहुत फोटोग्राफी करते हो। पर हमारा क्या????
ख़ुद बत्ती बुझा कर चैन से सोने वाले लोगों, हमारे लिए भी तो रात होने दो.......

©KunalJha 

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PC-Surajnath Yadav