साथ
जी पाते उस एक पल को हम,
इक हवा का झोंका सा आया,
ज्यों टूटे पत्ते शाखों से,
हर सपना वैसे तोड़ गया।
इक हवा का झोंका सा आया,
ज्यों टूटे पत्ते शाखों से,
हर सपना वैसे तोड़ गया।
कुछ कह पाते कुछ सुन पाते,
उससे पहले ही दूर हुए,
किसी बंदिश ने तुझको रोका,
थोड़े हम भी मजबूर हुए।
उससे पहले ही दूर हुए,
किसी बंदिश ने तुझको रोका,
थोड़े हम भी मजबूर हुए।
इक लहर सा उठता है अब भी,
क्या शाम वो फिर के आएगी?
क्या फिर वो पायल खनकेगी?
क्या साथ कभी फिर बैठेंगे?
फिर वो बातें हो पाएगी?
Picture Credit- Abhishek Kumar Pandey (abhigupt011.blogspot.com)
क्या शाम वो फिर के आएगी?
क्या फिर वो पायल खनकेगी?
क्या साथ कभी फिर बैठेंगे?
फिर वो बातें हो पाएगी?